कर्पूरी ठाकुर: एक साधारण व्यक्ति से जननायक बनने तक की कहानी
कर्पूरी ठाकुर भारतीय राजनीति के एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन गरीबों, दलितों, पिछड़ों और शोषितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। वे राजनीति में ईमानदारी और सादगी के प्रतीक माने जाते हैं। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
जन्म और प्रारंभिक जीवन :-
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गाँव (वर्तमान में कर्पूरीग्राम) में हुआ था। वे एक नाई (ठाकुर) जाति से संबंध रखते थे, जो उस समय समाज के पिछड़े वर्गों में गिनी जाती थी। उनके पिता श्री गोकुल ठाकुर सीमांत किसान थे और परंपरागत रूप से बाल काटने का कार्य भी करते थे। उनकी माता श्रीमती रामदुलारी देवी एक साधारण गृहिणी थीं।
गरीबी और अभावों के बीच कर्पूरी ठाकुर का बचपन बीता। संसाधनों की कमी के बावजूद उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने की ललक नहीं छोड़ी। उन्होंने 1940 में पटना विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की।
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स्वतंत्रता संग्राम में योगदान :-
कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक और क्रांतिकारी जीवन तब शुरू हुआ जब वे 1942 के "भारत छोड़ो आंदोलन" में शामिल हुए। उस समय वे छात्र थे, लेकिन देशभक्ति की भावना ने उन्हें आंदोलन में कूदने के लिए प्रेरित किया।
ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें 26 महीने तक भागलपुर के कैंप जेल में कैद रखा गया। जेल में रहने के दौरान भी उनका हौसला कमजोर नहीं पड़ा, बल्कि उनकी सोच और ज्यादा प्रखर हो गई। 1945 में जब वे रिहा हुए, तब तक वे पूरी तरह से समाजवादी विचारधारा से प्रभावित हो चुके थे।
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राजनीतिक जीवन की शुरुआत :-
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कर्पूरी ठाकुर ने राजनीति में प्रवेश किया। 1948 में वे आचार्य नरेंद्र देव और जयप्रकाश नारायण के समाजवादी दल से जुड़े और जल्द ही प्रादेशिक मंत्री बने।
1952 में, जब भारत में पहला आम चुनाव हुआ, तो उन्होंने समस्तीपुर से चुनाव लड़ा और बिहार विधानसभा के सदस्य बने। यह उनकी राजनीतिक यात्रा की महत्वपूर्ण शुरुआत थी। विधायक बनने के बाद उन्होंने शिक्षा और सामाजिक सुधारों पर विशेष ध्यान दिया।
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मुख्यमंत्री बनने की राह :-
1967 के बिहार विधानसभा चुनाव में, कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संयुक्त समाजवादी दल) एक बड़ी ताकत बनकर उभरी। इस चुनाव में कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ और पहली बार बिहार में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। कर्पूरी ठाकुर उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री बने। इस दौरान उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया—बिहार में उच्च शिक्षा तक मातृभाषा को अनिवार्य कर दिया, जिससे अंग्रेजी का वर्चस्व खत्म हो सके।
1970 में, वे पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। उनके कार्यकाल में समाज के वंचित वर्गों के लिए कई सुधार किए गए, लेकिन उनकी नीतियाँ कुछ प्रभावशाली वर्गों को पसंद नहीं आईं और राजनीतिक विरोध बढ़ गया।
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जेपी आंदोलन और दूसरी बार मुख्यमंत्री बनना :-
1974 में, जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति आंदोलन छेड़ा, तो कर्पूरी ठाकुर भी इसमें शामिल हो गए। यह आंदोलन भ्रष्टाचार और कांग्रेस सरकार के खिलाफ था। 1977 में जब जनता पार्टी सत्ता में आई, तो कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने।
इस कार्यकाल में उन्होंने ऐतिहासिक "कर्पूरी ठाकुर आरक्षण नीति" लागू की, जिसमें पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण दिया गया। इस फैसले का व्यापक प्रभाव पड़ा और इससे समाज में पिछड़े वर्गों को एक नई पहचान मिली।
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सादगी और ईमानदारी की मिसाल :-
कर्पूरी ठाकुर की सबसे बड़ी पहचान उनकी सादगी और ईमानदारी थी। मुख्यमंत्री रहते हुए भी वे एक साधारण जीवन जीते थे। वे न तो एसी में रहते थे और न ही आलीशान बंगले में। उनका पहनावा हमेशा धोती-कुर्ता होता था, और वे आम जनता के बीच जाकर उनकी समस्याएँ सुनते थे।
राजनीतिक जीवन में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उन्होंने कभी भ्रष्टाचार या समझौतावादी राजनीति को स्वीकार नहीं किया। उनके सिद्धांतों और विचारों के कारण उनके विरोधी भी उनका सम्मान करते थे।
अंतिम समय और मृत्यु :-
कर्पूरी ठाकुर का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ने लगा था। लंबे समय तक समाज सेवा और संघर्ष करते हुए उनका शरीर कमजोर हो गया था। 17 फरवरी 1988 को इस महान नेता का निधन हो गया। उनकी मृत्यु से बिहार और पूरे देश ने एक ईमानदार, समाजसेवी और संघर्षशील नेता को खो दिया।
उनकी मृत्यु के बाद भी उनके विचार और उनके द्वारा किए गए कार्य लोगों के दिलों में जिंदा हैं। बिहार में उन्हें "जननायक" के रूप में जाना जाता है, और उनकी विरासत को आज भी याद किया जाता है।
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निष्कर्ष :-
कर्पूरी ठाकुर का जीवन त्याग, संघर्ष और समाजसेवा का अनुपम उदाहरण है। वे राजनीति में सादगी और ईमानदारी की मिसाल थे। उनके द्वारा किए गए सामाजिक सुधार, विशेष रूप से शिक्षा और आरक्षण नीति, आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने अपने पूरे जीवन में जनता के अधिकारों और न्याय की लड़ाई लड़ी।
आज भी, जब भी सच्ची राजनीति, ईमानदारी और जनसेवा की बात होती है, तो कर्पूरी ठाकुर का नाम सम्मान से लिया जाता है। उनका जीवन और कार्य भारतीय राजनीति के लिए एक प्रेरणा हैं।
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